अब हीरा होगा सस्ता लैब में बाना Diamond जाने पूरी जानकारी!

अब हीरा होगा सस्ता लैब में बाना Diamond जाने पूरी जानकारी!

लैब में बाना Diamond

जिन्हें सिंथेटिक या लैब-ग्रोउन डायमंड्स भी कहा जाता है, उन्हीं तत्वों से बने होते हैं जिनसे कुदरती हीरे बनते हैं, यानी कार्बन। इन्हें उच्च तापमान और दबाव की परिस्थितियों में लैब में तैयार किया जाता है।

हाल ही में भारत में एक ज्वैलर ने सबसे बड़ा लैब में बना डायमंड तैयार किया है, जो एक रिकॉर्ड है। इस प्रकार के हीरे कुदरती हीरों से इस तरह अलग होते हैं:

1. उत्पादन प्रक्रिया : कुदरती हीरे लाखों सालों में पृथ्वी की गहराइयों में उच्च तापमान और दबाव के कारण बनते हैं। वहीं, लैब में बने हीरे कुछ हफ्तों में ही बन जाते हैं।

2.पर्यावरणीय प्रभाव : लैब-ग्रोउन डायमंड्स बनाने की प्रक्रिया का पर्यावरण पर कम असर होता है, जबकि कुदरती हीरे की खनन प्रक्रिया से पर्यावरण को अधिक नुकसान हो सकता है।

3.कीमत : लैब में बने हीरे आमतौर पर कुदरती हीरों की तुलना में सस्ते होते हैं क्योंकि उनकी उत्पादन लागत कम होती है।

4. प्योरिटी और क्वालिटी : लैब-ग्रोउन डायमंड्स में अक्सर कम अशुद्धियाँ होती हैं और इन्हें नियंत्रित परिस्थितियों में बनाया जाता है, जिससे उनकी क्वालिटी उच्च होती है।

5. पहचान : वैज्ञानिक परीक्षणों और उपकरणों से लैब-ग्रोउन और कुदरती हीरों के बीच अंतर पहचाना जा सकता है।

लैब-ग्रोउन डायमंड्स के बारे में कुछ और महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार है

लैब में हीरे बनाने की दो प्रमुख तकनीकें हैं:

1.हाई-प्रेशर हाई-टेम्परेचर (HPHT) :

इस विधि में कार्बन को अत्यधिक उच्च दबाव और तापमान पर रखा जाता है, जिससे हीरे का निर्माण होता है।
HPHT हीरे को तीन प्रकार के उपकरणों से बनाया जाता है: बेल्ट प्रेस, क्यूबिक प्रेस, और बैरल प्रेस।

2. केमिकल वेपर डिपोजिशन

इस विधि में कार्बन युक्त गैसों को एक चैंबर में डाला जाता है और उच्च तापमान पर तोड़ा जाता है, जिससे हीरे का निर्माण होता है।

यह विधि HPHT की तुलना में सस्ती और कम ऊर्जा वाली होती है, और इससे उच्च गुणवत्ता के हीरे बनाए जा सकते हैं।

फायदें और नुकसान

पर्यावरण अनुकूल : लैब में बने हीरे खनन की आवश्यकता को समाप्त कर देते हैं, जिससे पर्यावरण को कम नुकसान होता है।
नैतिकता : लैब-ग्रोउन डायमंड्स बनाने में बाल श्रम या संघर्षरत क्षेत्रों से हीरों की आपूर्ति की समस्या नहीं होती।
मूल्य : ये हीरे कुदरती हीरों की तुलना में सस्ते होते हैं।

नुकसान :
वैल्यू : कुदरती हीरों का मूल्य समय के साथ बढ़ सकता है, जबकि लैब-ग्रोउन डायमंड्स का मूल्य स्थिर या घट सकता है।

समाज में मान्यता : कुछ लोग अभी भी कुदरती हीरों को ही असली मानते हैं और लैब-ग्रोउन डायमंड्स को प्राथमिकता नहीं देते।

प्रमुख उत्पादक

भारत, चीन, और अमेरिका जैसे देशों में लैब-ग्रोउन डायमंड्स का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। विशेष रूप से भारत में, यह उद्योग तेजी से उभर रहा है और भारतीय ज्वैलर्स इस क्षेत्र में नए-नए रिकॉर्ड बना रहे हैं।

भविष्य लैब-ग्रोउन डायमंड्स का बाजार तेजी से बढ़ रहा है

और भविष्य में यह उद्योग और भी व्यापक हो सकता है। तकनीकी उन्नति और उपभोक्ता जागरूकता के साथ, ये हीरे ज्वैलरी इंडस्ट्री में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल कर सकते हैं।

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